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आजमगढ़: विट्ठल घाट गुरुद्वारा पर वीर बाल दिवस का हुआ आयोजन





दसवें गुरु गोविंद सिंह के चारों पुत्रों के बलिदान को याद कर दो गई श्रद्धांजलि

आजमगढ़ : शहर से सटे विट्ठल घाट पर गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में गुरुद्वारे में वीर बाल दिवस का आयोजन किया गया। इस दौरान परंपरागत रूप से शबद कीर्तन के साथ ही अटूट लंगर भी चलाया गया। वहीं वीर बाल दिवस को मनाए जाने को लेकर जागरूक भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गोरक्ष प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश जी रहे। आरएसएस के नगर कार्यवाह अजय अग्रवाल ने बताया कि सनातन धर्म के लिए 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह या तो शोक के रूप में मनाना चाहिए या फिर शौर्य के रूप में मनाना चाहिए। लेकिन सनातन धर्म को मानने वालों को इसकी जानकारी नहीं दी गई। इसी हफ्ते में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों को मुगल शासको ने शहीद कर दिया था। सनातन धर्म की रक्षा के लिए चारों बच्चे बलिदान हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी इसी को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से गुरुद्वारा कमेटी के सहयोग से वृहद श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य की बलिदान के प्रति बच्चों को जागरुक करते हुए प्रेरणा दें और अपने भविष्य को सुरक्षित रखें। बता दें कि साल 2022 में भारत सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिन को सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की याद में मनाया जाता है। उनकी वीरता और पराक्रम के सामने बड़े-बड़े वीर भी छोटे पड़ जाते हैं।
वीर बाल दिवस हर साल 26 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों, जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इन युवा साहिबजादों ने धर्म और मानवता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इन्हीं के सम्मान और याद में वीर बाल दिवस मनाया जाता है।
सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने साल 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इनके चार बेटे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह भी खालसा का हिस्सा थे। उस समय पंजाब में मुगलों का शासन था। साल 1705 में मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी को पकड़ने पर पूरा जोर लगा, जिसके कारण उन्हें अपने परिवार से अलग होना पड़ा। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी माता गुजरी देवी और उनके दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह अपने रसोइए गंगू के साथ एक गुप्त स्थान पर छिप गईं।
लेकिन लालच ने गंगू के आंखों पर पट्टी बांध दी और उसने माता गुजरी और उनके पुत्रों को मुगलों को पकड़वा दिया। मुगलों ने इन पर खूब अत्याचार किए और उन्हें उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करने लगे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इस समय तक गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े पुत्र मुगलों के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो चुके थे। अंत में मुगलों ने 26 दिसंबर के दिन बाबा जोरावर साहिब और बाबा फतेह साहिब को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। उनकी शहादत की खबर सुनकर माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
साहिबजादा जोरावर सिंह की उम्र 9 वर्ष थी और फतेह सिंह की 6 वर्ष थी। इतनी कम उम्र में ही इन साहिबजादों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इनका ये बलिदान इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो चुका है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए धैर्य और दृढ़ता बनाए रखें।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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