लोकसभा उपचुनाव में साइकिल की राह चुनौतियों भरी होगी....
आजमगढ़ : उपचुनाव में साइकिल की राह चुनौतियों भरी होगी ...। इसलिए भी कि संसदीय उपचुनाव के आंकड़ों में 50 फीसद ही रही है सीट बचाने की गुंजाइश। वर्ष 1978 में उपचुनाव की वजह बने दिग्गज रामनरेश मुख्यमंत्री बनकर भी जनता पार्टी को सीट वापस दिलवा नहीं पाए थे, जबकि 2008 में सीएम रहीं मायावती ने रमाकांत को हटाया तो अकबर अहमद डंपी को जिता बसपा की सीट बरकरार रखी। ऐसे में उपचुनावों में फिफ्टी-फिफ्टी रहा जीत-हार का आंकड़ा, अबकी किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल है। बहरहाल, आंकड़ों में तस्वीर चाहे जो हो, अधिसूचना के बाद बढ़ी चुनावी हलचल के बीच चुनावी चाणक्य सक्रिय हो उठे हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से सांसद चुने गए थे। उन्होंने अपने पिता एवं सपा सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव की सीट पर दावेदारी की थी। उन दिनों जनता में उत्साह था, लिहाजा मोदी लहर में भी भाजपा की राह मुश्किल हो गई थी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में करहल सीट से जीतने के बाद अखिलेश ने आजमगढ़ से नाता तोड़ लिया। भारत निर्वाचन आयोग ने अधिसूचना जारी की तो तीसरे उपचुनाव में सांसद चुनने की चर्चा सुर्खियां बन गईं। लाजिमी भी कि वर्ष 1977 में जनता पार्टी की लहर में आजमगढ़ के दिग्गज रामनरेश यादव कांग्रेस के चंद्रजीत यादव को 1,37,810 मतों से पराजित कर सांसद बने थे, लेकिन उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तो 1978 के उप चुनाव में जनता पार्टी के रामबचन यादव (95,944 मत) कांग्रेस की मोहसिना किदवई (1,31,329 मत) से हार गए थे। मोहसिना का प्रचार करने इंदिरा गांधी आई थीं। वर्ष 2008 में उपचुनाव की स्थिति बनी जब वर्ष 2004 में बसपा के टिकट पर सांसद बने रमाकांत यादव की नजदीकियां सपा से बढ़ीं। बसपा ने उनकी सदस्यता समाप्त कराई। सपा ने उपचुनाव में पूर्व मंत्री बलराम यादव को टिकट दे दिया, तो भाजपा ने रमाकांत को मैदान में उतार दिया था। बसपा ने अकबर अहमद डंपी को उतार पूरी ताकत झोंक दी और सीट 52,368 मतों के अंतर जीत ली। उस समय सपा को 1,53,671 मतों के साथ तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। अब अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद तीसरी बार उपचुनाव होने जा रहा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे पर गौर करें तो सपा के लिए माहौल सुखद है, लेकिन विधान परिषद चुनाव के परिणाम उतने ही दुखदाई रहे हैं। बीते विधानसभा चुनाव में साइकिल की सरकार भी नहीं बन पाई। ऐसे में आशंकाएं गहरा रहीं कि ढाई लाख से ज्यादा मतों के अंतर से भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ को हराने वाले अखिलेश अपना गढ़ बचाने के लिए किस योद्धा काे मैदान में उतारते हैं।
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