गोशालाओं के गोबर से महिलाओं का समूह आत्मनिर्भर बनेगा, पर्यावरण संरक्षण भी होगा
गोबर से कंपोस्ट खाद, गमले, दीये बनाएंगी समूह की महिलाएं
आजमगढ़ : गोशालाओं में पल रहे बेसहारा पशु आजमगढ़ में खुशहाली और हरियाली का माध्यम बनेंगे। यहां से निकलने वाले करीब 6742 क्विंटल गोबर से यह संभव होगा। स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाएं गोशालाओं के गोबर से कंपोस्ट खाद, गमले, दीये बनाएंगी। इन उत्पादों को राजकीय व निजी नर्सरियों को बेचा जाएगा। इस कारोबार से होने वाले लाभ में से आधी धनराशि गोशाला प्रबंधन और शेष धन महिला समूहों को ट्रांसफर किया जाएगा। इस तरह आधी आबादी आत्मनिर्भर होगी तो गोशाला खुशहाल होंगे। नर्सरियों के गमले में तैयार पौधे जनपद समेत पास-पड़ोस के जिलों में हरियाली बिखेरेंगे। यूं पर्यावरण के वाहक बनेंगे गोबर के गमले : जनपद में राजकीय एवं निजी पौधशालाओं की कुल संख्या 40 है। नर्सरियों में पौध तैयार करने के लिए अभी पालीथिन बैग इस्तेमाल किए जाते हैं। एक आंकड़े मुताबिक जनपद में करीब आठ लाख पालीथिन बैग का इस्तेमाल होता है। अब इनकी जगह गोबर के गमले लेंगे। इस तरह गोबर के गमलों में जहां नर्सरी तेज गति के साथ गुणवत्तायुक्त तैयार होगी तो वहीं पालीथिन से दूरी पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति दिलाने में सहायक साबित होगी। महिलाओं का समूह नर्सरियों को देगा कंपोस्ट बीते साल जनपद के राजकीय एवं निजी नर्सरियों में 13,435 घनफीट कंपोस्ट खाद का उपयोग हुआ था। नर्सरियों के संचालक अपनी जरूरतें बाजार से पूरी करते थे। अब यहां कंपोस्ट सिर्फ स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ही बेच सकेंगी। किसी तरह की कोई परेशानी न आए, इसके लिए गोशालाओं, नर्सरियों एवं समूहों के लिए उनका कार्यक्षेत्र निर्धारित कर दिया गया है। कमाल की पहल - जिले में गोशालाओं की संख्या : 58 - गोशालाओं में प्रतिदिन गोबर की उपलब्धता : 6742 कुंतल - जनपद में नर्सरियों की संख्या : 40 - नर्सरियों में कंपोस्ट खाद की जरूरत : 13,435 घन फीट - नर्सरियों में प्रयुक्त पालीथिन के बैग : आठ लाख जनपद में हरियाली और खुशहाली लाने का रोडमैप तैयार हमने जनपद में हरियाली और खुशहाली लाने का रोडमैप तैयार किया है और इसका रास्ता गोशालाओं से होकर गुजरेगा। कोई अतिरिक्त पूंजी नहीं लगेगी। गोशालाओं के मुफ्त गोबर से महिलाओं का समूह न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि गोशाला भी खुशहाल होंगे। गोबर निर्मित उत्पाद के लिए बाजार भी नहीं ढूंढऩा है। हमारी एजेंसियां सीधे खरीदारी करेंगी। लाभ में से आधी धनराशि गोशालाओं के बेहतर रखरखाव पर खर्च की जाएगी तो शेष से समूह की महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाएंगी। -अमृत त्रिपाठी, जिलाधिकारी
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