आजमगढ़ : बाबा भवर नाथ जी मंदिर परिसर में चल रही नौ दिवसीय श्री राम कथा के आठवें दिन युवा संत सर्वेश जी महाराज ने कहा कि जो युवा अवस्था में भगवान की भक्ति नहीं कर पाता वह जीवन के चौथे चरण में ईश्वर की भक्ति नहीं कर सकता क्योंकि उस समय शरीर साथ नहीं देता मनुष्य और अस्वस्थ हो जाता है बीमारियों से ग्रसित हो जाता है इसलिए जो कार्य बुढ़ापे में करना है वह आज से ही प्रारंभ क्यों न कर दिया जाए इसलिए समय रहते यह उत्तम कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए।
संगीतमयी श्री राम कथा में उन्होंने राम वनवास प्रसंग सुनाकर सभी श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया इस प्रसंग को सुनाते - सुनाते खुद को रोक न सके और उनकी आंखों से अश्रु छलक पड़े पूरा पंडाल मानो ऐसा लग रहा था कि सचमुच आज प्रभु श्रीराम का वनवास को अपनी आंखो से देख रहा हो ऐसा दृश्य जो सभी को झकझोर कर रख दिया।
उन्होंने कहा कि सदा अपने पुत्र को अच्छे संस्कार देने चाहिए। त्याग से बड़ी तपस्या और कोई नहीं है बिना त्याग कि आप जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते जीवन को सरल बनाना है तो त्याग करना सीखिए। जो संतान पिता की आज्ञा न माने वह पुत्र नहीं है आज पुत्र अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं कर रहे यह बड़े दुख की बात है ! वास्तव में वह पुत्र कहलाने के लायक नहीं है। एक प्रभु श्रीराम थे जिन्होंने माता पिता की आज्ञा को शिरोधार्य मानकर चौदह वर्षो के लिए वन चले गए थे।
सर्वेश जी महाराज ने कहा कि जिसका पुत्र राम का भक्त होता है वही माता वास्तव में पुत्रवती होती है और वह एक सच्चा पुत्र होता है प्रभु राम अपने भक्त की ठीक उसी प्रकार चिंता वह ख्याल रखते हैं जिस प्रकार एक मां अपने बच्चे का ख्याल रखती है जैसे शरीर में प्राण न हो तो वह किस काम का , नदी में पानी न हो तो वो किस काम की ठीक उसी प्रकार मानव में प्रभु की भक्ति ना हो किस काम का वह व्यर्थ है मानव है जो प्रभु का न हो वह किसी का क्या होगा जिस प्रभु ने आपको इतना सुंदर शरीर और यह मानव जीवन दिया है उसे शुक्रिया ,धन्यवाद करना आप का परम कर्तव्य बनता है।
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