फाइल चित्र : स्व0 गुंजेश्वरी प्रसाद को सम्मानित करते पूर्व वि. स. अध्यक्ष सुखदेव राजभर
आजमगढ़। आज दिनांक-28 जून-2016 को एक शोक सभा का आयोजन ‘शार्प रिपोर्टर’ के संपादकीय कार्यालय होटल नीलकंठ में किया गया। जिसमें जनपद के पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने समाजवादी लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए याद किया। इस शोक सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, गजलकार डाॅ. मधुर नज्मी ने की। शोक सभा में स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद की 26 जून को हुए देहान्त को पत्रकारिता एवं समाजवादी आंदोलन की अपूर्णीय छति बताते हुए डाॅ.मधुर नज्मी ने कहा कि स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद जीवन पर्यन्त जिन विचारों को अंगीकार किया उसी के लिए संघर्ष करते रहे। डाॅ.राममनोहर लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ काम करने वाले गुंजेश्वरी प्रसाद अंतिम समय तक समाज के आखिरी व्यक्ति की लड़ाई लड़ते रहे। उन्हें सरकारी मान-सम्मान या पुरस्कारों की न कभी लालसा थी, और न ही उन्होंने कभी कोई आवेदन ही किया। अपने विचारों के सहारे जनता की आवाज को मुखर करने वाले स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद ने पत्रकारिता के उच्च मानदण्डों को स्थापित किया। देश का कोई पत्र या पत्रिका नहीं थी जिसमें स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद के आलेख न छपे हों। पत्रकार विजय यादव ने स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद के महाप्रयाण पर कहा कि उनके जाने से पत्रकारिता में ऐसी शून्यता आ गयी है, जिसकी भरपाई वर्षों तक शायद नहीं हो पायेगी। पत्रकार आशुतोष द्विवेदी ने कहा किस्व.गुंजेश्वरी प्रसाद के दिखाये गये मार्गाें पर चल कर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने जो रेखा खींची है उसे आने वाली पीढ़ी छू भी पायेगी यह कहना कठिन होगा। पत्रकार डाॅ.दीपनारायण मिश्र ने स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि पत्रकारिता के जिस शलाका पुरूष को आज हम याद कर रहे हैं दरअसल ऐसे लोग कभी स्वर्गीय नहीं होते बल्कि अपने विचारों के साथ सदैव समाज के धमनियों में स्पंदन करते हैं। समाजवादी विचारक संजय श्रीवास्तव ने स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद को याद करते हुए कहा कि आजमगढ़ पर जितना गुंजेश्वरी प्रसाद ने लिखा है शायद ही किसी लेखक या पत्रकार ने लिखा हो। धर्मयुग, दिनमान, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कल्पना, चैखम्भा, जनसत्ता, आज, दैनिक हिन्दुस्तान, जनवार्ता, जनमोर्चा आदि पत्र,पत्रिकाओं में लिखकर उनकी गरिमा बढ़ायी। आगे उन्होंने कहा कि आजमगढ़ से प्रकाशित शार्प रिपोर्टर और मनमीत पत्रिकाओं के वे संरक्षक तथा नियमित लेखक भी थे। अभी पिछले 29 मार्च को आजमगढ़ में आयोजित ‘मीडिया-समग्र-मंथन 2016’ के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में उ.प्र. के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष मा. सुखदेव राजभर के हाथों ‘शार्प रिपोर्टर लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान 2016’ प्रदान किया गया था। पत्रकार रामअवध यादव ने कहा कि स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद हम जैसे पत्रकारों के लिए प्रेरणा के स्रोत थे। शार्प रिपोर्टर के संपादक एवं उनसे पिछले दो दशकों से घनीभूत ढंग से जुड़े अरविन्द कुमार सिंह ने स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद की मौत को अपनी निजी छति बताते हुए कहा कि स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद देश के न केवल दूरदर्शी पत्रकार थे बल्कि मेरे लिए गुरू व अभिभावक भी थे। पत्रकारिता के जिन उच्च मानदण्डों की स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद ने स्थापना की आने वाली पीढ़ियाँ शायद उन्हें छू भी न पायंे। उनकी कथनी और करनी की साम्यता के कारण ही जयप्रकाश नारायण स्वयं उनसे मिलने गोरखपुर आये थे। गुंजेश्वरी प्रसाद ने समाजवाद की दीक्षा स्वयं इसके आचार्य डाॅ.राममनोहर लोहिया से ली थी। गोरखपुर के जिला परिषद के सभागार में पहली बार गुंजेश्वरी प्रसाद की मुलाकात राममनोहर लोहिया से हुयी थी। जहाँ पर डाॅ.लोहिया ने गुंजेश्वरी प्रसाद से सवाल किया था कि देश के लिए तुम क्या दे सकते हो। जिस पर गुंजेश्वरी प्रसाद ने कहा था कि डाॅ. साहब ! मेरे पास न धन है और न दौलत, ले देकर यही शरीर है जिसे मैं आप को दे सकता हूँ। उनके इस जवाब से प्रभावित होकर डाॅ.राममनोहर लोहिया ने स्वयं उन्हें चार आने की सदस्यता देकर पूर्णकालिक समाजवादी बना दिया। जिसके फलस्वरूप गुंजेश्वरी प्रसाद पाण्डेय, गुंजेश्वरी प्रसाद हो गये। धर्म, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर गुंजेश्वरी प्रसाद ने समाजवादी आंदोलन को मुखर किया और बदले में 24 बार जेल यात्राएं कीं। दमनकारी शासन एवं पुलिस की बर्बरता के शिकार गुंजेश्वरी प्रसाद के सभी दांत तोड़ दिये गये थे, बावजूद समाजवादी आंदोलन की धार जीवन पर्यन्त कमजोर नहीं होने दी। और लोहिया से किये गये वायदे के मुताबिक अंतिम सांस भी समाजवादी विचारधारा के चोले में ही ली। आजादी के समय देश बंटवारे के बाद गांधीवादी नेता खां अब्दुल गफ्फार खां अर्थात सीमांत गांधी, महात्मा गांधी के कहने पर पाकिस्तान चले गये। और वे जब पहली बार हिन्दुस्तानी धरती पर अपने पांव रखे तो वह स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद ही थे जिन्होंने उनका विस्तृत साक्षात्कार लिया। यह ऐतिहासिक साक्षात्कार तत्कालीन समय में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था। स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद के आलेख जो पूर्वी उ.प्र. के सामाजिक जीवन दर्शन पर हैं, उसे आस्ट्रेलिया के कैनबरा विश्वविद्यालय में आज भी पढ़ाया जाता है। सोवियत संघ की पत्रिका सोवियत भूमि से लेकर लोहिया के चैखम्भा, हैदराबाद की कल्पना, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसे पत्रिकाओं में राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक विषयों पर विचारोत्तेजक आलेख पिछले चार-पांच दशकांे तक भारतीय पाठकों का मानसिक खुराक था।जो आज यह क्रम अंतिम सांस तक चलता रहा। मरने से पूर्व उन्होंने अंतिम आलेख भी समाजवादी मुलायम और उनके नवसमाजवाद पर लिख रहे थे। स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद की लेखन शैली राष्ट्रीय मुद्दों को ही नहीं जब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को उठाती तो उनमें एक दूरदर्शी लेखक एवं अन्तर्राष्ट्रीय विषयों की विशेषज्ञयता झलकती थी। उनकी लेखनी समाज के हर वर्ग के लिए चली। 13 मार्च-1936 को गोरखपुर जनपद के कौड़ीराम बाजार से सटे मिश्रौली गांव में पैदा हुए गुंजेश्वरी प्रसाद 1957 में स्नातक किये। लोहिया केजनआंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अंगे्रजी हटाओं आंदोलन 1960, दामबांधों आंदोलन 1960, बिमार प्रधानमंत्री हटाओं 1964, उ.प्र. बन्द आंदोलन 1966, भूमि बांटों 1969, इंदिरा हटाओं 1970 तथा आपातकालीन आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी। 1964 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को काला झण्डा दिखाकर चर्चा में आये स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद ने माया त्यागी काण्ड को जनआंदोलन बना दिया था। समाजवाद के आचार्य डाॅ.राममनोहर लोहिया पर स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद ने एक किताब ‘डाॅ.राममनोहर लोहिया’ लिखी है जिसे नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली ने छापा है। पत्रकारिता में दीर्घकालिक सेवा के लिए अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित स्व.गुंजेश्वरी प्रसाद को 1965 में सहअस्तित्व पर सोवियत भूमि पुरस्कार, रामधारी सिंह दिनकर पुरस्कार, पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के हाथों सरयूरत्न सम्मान आदि प्राप्त हुये। इस अवसर पर रमेश चन्द्र गिरि, पूनम श्रीवास्तव, निरूपमा श्रीवास्तव, सीताराम सिंह आदि लोग उपस्थित थे।
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